रायपुर। परम पूज्य उपाध्याय प्रवर युवा मनीषी मनीष सागरजी महाराज ने रविवार को विशेष प्रवचन श्रृंखला में "परिवार से परमात्मा तक यात्रा" विषय पर प्रवचन दिया। टैगोर नगर स्थित पटवा भवन में धर्मसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि परिवार से परमात्मा तक की यात्रा का मार्ग धर्म है। अपने परिवार में स्वच्छ,शांति का वातावरण निर्मित करें, कलह से बचें। कलह में पड़कर आप स्वयं और अपने परिवार का विकास नहीं कर पाएंगे। हमारी पहली प्राथमिकता है खुद को सुधारना। परिवार के सभी सदस्य यदि ऐसा सोचेंगे तो परिवार में शांति का माहौल होगा,कलह नहीं होगी। सभी शांत मन से धर्म से जुड़कर परिवार से परमात्मा तक की यात्रा तय करेंगे। उपाध्याय भगवंत ने कहा कि सभी आनंद के साथ जीवन जीना चाहते हैं।
हमको ऐसा आनंद लेना है जो गंगा के प्रवाह से जैसा हो। इस आनंद को पाने की ट्रेनिंग स्कूल परिवार है। यदि परिवार में अच्छे से ट्रेनिंग ले ली तो हताशा और निराश नहीं होगी। हमें ऐसा स्वभाव रखना है, ऐसा जीने का तरीका डेवलप करना है जो सबको पसंद आए। इससे हम खुद भी आनंद में रहे और लोगों को भी आनंद में रखें। उपाध्याय भगवंत ने कहा कि हमारी पहली प्राथमिकता है स्वयं को सुधारना। हम अपनी साधना करने ही इस मनुष्य भव में आए हैं। पहले हमें स्वयं को देखना है लेकिन हम दूसरों को देखने में व्यस्त रहते हैं इसलिए अपने ऊपर ध्यान नहीं दे पाते हैं।
हम ऐसा मनोभाव डेवलप करें कि जीना है परिवार के साथ। अपना और अपने परिवार का विकास सभी आनंद से परमात्मा जुड़ें। हमारा एक मात्र लक्ष्य होना चाहिए सद्गति की प्राप्ति। हम मनुष्य भव में आए हैं तो किस दुर्गति से आए हैं,यह ज्ञान रहे कि इस दुर्गति को दूर करना ही हमारा लक्ष्य होना चाहिए। उपाध्याय प्रवर ने कहा कि राग और द्वेष की जकड़ से हम निकल नहीं पा रहे हैं। परिवार में भी हमें सभी से प्रेम से रहना है। बस एक ही तैयारी होनी चाहिए कि परिवार में रहकर कलह से दूर होकर अपनी सद्गति की तैयारी करूं। अपनों की सद्गति के लिए तैयारी करूं। इस भव को अनेक भाव की उपलब्धि बनाना है इसीलिए के लिए ही आपको परिवार मिला है।
अपना विकास और संतान का विकास करना लक्ष्य हो। संतान धर्म मार्ग में आगे बढ़े ऐसा विकास करना चाहिए ना कि यह सोचकर कि आपकी सेवा में काम आए। उपाध्याय भगवंत ने कहा कि जिन शासन के परिवार की पहचान अलग ही होनी चाहिए। परिवार में रह रहे हो तो पहला उद्देश्य होना चाहिए कि शारीरिक रोगों से स्वस्थ रहें। दूसरा उद्देश्य होना चाहिए मानसिक रोगों से स्वस्थ रहें। तीसरा उद्देश्य होना चाहिए कलह मुक्त जीवन जीना चाहिए। चौथा उद्देश्य होना चाहिए प्रेम से जीवन जीना चाहिए। पांचवा उद्देश्य होना चाहिए संतान का विकास करना चाहिए और यह उद्देश्य होना चाहिए कि जब अंतिम समय आए तो समाधि रहे। उपाध्याय भगवंत ने कहा कि जीवन में अड़ने से काम नहीं होगा, मुड़ना पड़ेगा। जैसे वाहन की स्टेरिंग वाहन को कंट्रोल करती है, वैसे ही हमें अपने जीवन में अनुशासन रखना होगा।
एक बात की तैयारी हमेशा रहनी चाहिए क्षमा देना और क्षमा मांग लेना। क्षमा करने और मांगने में कुछ खर्च नहीं होता, इससे कद नीचे नहीं आता, कद हमेशा बढ़ता रहता है। परिवार में जीवन में जब-जब जरूरत पड़े तो इगो आगे ना आए हमेशा पहल करें, इगो को गो कर दें। क्षमा मांगना सबसे सरल तरीका है, गलती हो जाए तो क्षमा मांगने में देर नहीं करना चाहिए। उपाध्यक्ष भगवंत ने कहा कि आज लोग इतने कमजोर हो गए कि आत्महत्या का पाप करते हैं। जीवन में आत्महत्या कोई समाधान नहीं। यदि आपने पिछले भव में कुछ गलत किया है तो इस भाव में आपको चुकाना पड़ेगा। फिर इस मुसीबत से घबराना नहीं है, यदि आत्महत्या करोगे तो मनुष्य भव से किस गति में जाओगे, क्या-क्या भोगना पड़ेगा। कभी ऐसा लगे कि मैं दुखी हूं तो दूसरे अपने से बड़े दुखी को देख लेना चाहिए।
जीवन में चाहे कितने भी दुख आ जाएं स्वयं होकर अपने जीवन को नष्ट नहीं करना है। किसी भी परिस्थिति में यह कठोर कदम नहीं उठाना है। हमेशा दो बात का ध्यान रखना बिना किए पाप का फल नहीं मिलता और बिना गलती की सजा नहीं मिलती। जो भी पाप कर्म का उदय आया है उसे भोगना पड़ेगा और इससे लोगों के गलत कदम उठाओगे तो अगले जन्म में सूत समेत भोगना पड़ेगा। बस भगवान पर भरोसा रखो। भगवान से जुड़े रहो,धर्म,ध्यान, स्वाध्याय के साथ समता का भाव रखकर अपने जीवन का कल्याण करो।
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